महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा

 

महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा – विस्तार से व्याख्या

महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना का सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह दिन शिवभक्तों के लिए विशेष होता है, क्योंकि इसे शिव और पार्वती के विवाह का शुभ अवसर भी माना जाता है। इस दिन से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जो भगवान शिव की महिमा को दर्शाती हैं




1. शिव-पार्वती विवाह की कथा

पृष्ठभूमि:

भगवान शिव की पहली पत्नी, देवी सती, प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें शिवजी को आमंत्रित नहीं किया गया। जब देवी सती वहाँ पहुँचीं, तो उनके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया। यह अपमान सहन न कर पाने के कारण देवी सती ने स्वयं को यज्ञ अग्नि में समर्पित कर दिया।

शिव का विरक्ति काल:

देवी सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव अत्यंत दुखी हो गए और उन्होंने संसार से विरक्त होकर गहरे ध्यान में लीन रहने का निर्णय लिया।

पार्वती की तपस्या:

देवी सती ने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया। वे भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।

शिव-पार्वती विवाह:

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। इसलिए इस दिन को शिव-पार्वती के पावन मिलन के रूप में मनाया जाता है


                                    Ψ ll卐ll हर हर महादेव ll卐ll Ψ


                                            धर्मो रक्षति रक्षितः 

                            तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा.


                           जय महाकाल.

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